Durga puja essay in hindi-दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा durga puja essay in hindi

दुर्गा पूजा durga puja भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है यह पर्व शक्ति का प्रदर्शन करता है दुर्गा पूजा durga puja का महत्‍व भारत मे विशेष स्‍थान रखता हैं। दुर्गा पूजा  2021में आपके जीवन में माता रानी का आर्शीवाद सदा आप पर बने रहें।
इस पोस्‍ट में दुर्गा पूजा durga puja(durga puja essay in hindi) पर निबंध लेख प्रस्‍तुत है 


अग्रत: सकसं शास्‍त्रं पृष्‍ठत: सशरं धनु:।

अर्थात-आगे सभी शास्‍त्र हों और पीठ पर बाणों से युक्‍त धनुष।इसका तात्‍पर्य यह है कि मानव जीवन की पूर्णता के लिए शास्‍त्रबल के साथ साथ शस्‍त्रबल का होना जरूरी है।शास्‍त्रबल और शस्‍त्रबल दोनों के लिए संयोग से ही हमारा राष्‍ट्र सुरक्षित रह सकता है। शास्‍त्रबल के लिए हम सरस्‍वती की आराधना करते हैं और शस्‍त्रबल के लिए मां दुर्गा की। दुर्गा पूजा हिन्‍दुओं को एक धार्मिक पर्व है। जिसमें शक्ति प्राप्ति के लिए आदिशक्ति दुर्गा पूजा की जाती है।

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दशहरा, विजयादशमी, दुर्गा पूजा आदि इसी पर्व का नाम हैं। इन सभी नामों के पीछे  धार्मिक कारण लगभग एक ही हैं। इन नामों की सार्थकता भगवान श्री राम की कथा से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने आश्विन शुक्‍ल दशमी को ही दृष्‍ट रावण पर विजय पायी थी । इसलिए इस पर्व को विजयादशमी कहतें हैं। चूंकि इसी दिन दशमुख वाले रावण की हार हुई थी इसलिए इस पर्व का दूसरा नाम दशहरा है। ऐसी भी कथा है कि राम रावण युद्ध में रावण का वध राम के लिए कठिन होता हजा रहा था। थककर श्री राम ने शकित की देवी मां दुर्गा की उपासना की। उपासना से प्रसन्‍न हो देवी ने श्री राम को रावण वध का आर्शीवाद दिया। उसके बाद ही श्री राम रावण का वध कर सके। इसलिए इस पर्व का एक नाम दुर्गा पूजा भी है।

दुर्गा पूजा पर्व एक और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है महिषासुर नामक एक अत्‍याचारी राक्षस राजा था। उसके अत्‍याचारों से प्रजा त्रस्‍त थी। देवता भी भयभीत रहते थे। सभी ने मिलकर महाशक्ति की उपासाना की । भक्‍तों की प्रार्थना से प्रसन्‍न होकर आदिशकित दुर्गा प्रकट हुई। उन्‍होंने अपनी अनन्‍त शकित से महिषासुर,शुम्‍भ निशुम्‍भ, मधु कैटभ आदि भयंकर राक्षसों का संहार किया। इसके बाद सर्वत्र शांति एंव उल्‍लास का वतावरण छा गया। मां दुर्गा के प्राक्टय एंव राक्षसों के संहार की समृति में दुर्गा पूजा का त्‍यौहार मानाया जाता है।

दुर्गा पूजा आश्विन माह से शुक्‍ल पक्ष की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। मां दुर्गा की भव्‍य मूर्तिया महीनों पहले ही बननी प्रारम्‍भ हो जाती हैं। मूर्ति में मां को सिंह पर सवार दिखालाया जाता है। मां का एक पैरा महिषासुर के कंधे पर और मां को बरछी असुर की छाती में धंसी रहती है। मां दुर्गा के प्राकट्य एंव राक्षसों के संहार की समृति में दुर्गा पूजा का त्‍यौहार मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा आश्विन माह  के शुक्‍ल पक्ष की दसवीं तिथि को मानाया जाता है। मां दुर्गा की भव्‍य मूर्तियां महीनों पहले ही बननी प्रारम्‍भ हो जाती हैं। मूर्ति में मां को‍ सिंह पर सवार दिखलाया जाता है। मां का एक पैरा महिषासुर के कंधे पर और मां की बरछी असुर की छाती में धंसी रहती है। मां के दस हाथ होते हैं। सभी हाथ अस्‍त्र शस्‍त्र से सुसज्जित रहते हैं। कहीं कहीं उनके दाएं भाग में लक्ष्‍मी और बायें भाग में सरस्‍वती विराजती हैं। गणेश और कार्तिकेय भी साथ रहते हैं। यह शक्ति, ज्ञान  और धन के समन्‍वय का प्रतीक हैफ ऐसी ही भव्‍य मूर्ति का पूजास्‍थल पर स्‍थापित किया जाता है। पूजास्‍थल पर आश्विन प्रतिपदा से लेकर नवमी तक लगातार दुर्गापाठ होता है।हसे नवाह्न पाठ भी कहते हैं। लोग पवित्रता के साथ अपने घरों में भी नवाह्न पाठ करते हैं। पूरा परिवार श्रद्धालु मां की मूर्ति के पास हाथ जोड़कर यहा वर मांगता है-

महिषासुरनिर्णाशि भक्‍तानां सुखदे नम:।

रूप देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

अर्थात- महिषासुर राक्षस का विनाश करने वाली, भक्‍तों को सुख देने वाली माता तुम्‍हें नमस्‍कार है। तुम हमें रूप देा, विजय दो,यश देा एवं हमारे दुगुणों का नाश करो।

दशमी को खूब चहल पहल रहती है। पूजा स्‍थल पर कहीं कही मेले भी लगाये जाते हैं। कुछ शहरों में जिस दिन रावण,कुम्‍भकर्ण और मेघनाद का पुतला बनाकर जलाया जाता है । यह दृश्‍य बड़ा आकर्षण होता है। इसके बाद दूसरे किन बड़ी धूमधाम से जुलूस निकालकर मां की मूर्ति को तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है।

परन्‍तु, आजकल जिस ढंग से दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाता है। उससे इस पर्व की पवित्रता, एंव महत्‍ता घट रही है। पूजा के लिए जबरदस्‍ती चंदे की उगाही होती है। इससे भाईचारे के सम्‍बन्‍ध में कटुता आने का भय बन जाता है। पूजास्‍थल पर फिल्‍मी गीत गाये जाते है इससे मां के मंत्र का प्रभाव रहता है एवं ध्‍वनि प्रदूषण मे भी वृद्धि होती है। दुर्गा पूजा का मर्म तो अपने अंदर के काम, क्रोध और मोह को नाशकर आत्‍मबली बनने से है। रावण कुम्‍भकर्ण और मेघनाद का वध काम, क्रोध और मोह के नाश का प्रतीक है। अत: हर श्रद्धालू को दुर्गा पूजा में यही भाव रखना चाहिए।



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