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शास्त्री जयंती 2021-लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म दिवस । happy birthday lal bahadur shastri
शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते।
विध्नों को गले लगाते हैं,
कांटों में राह बनाते हैं।
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2 october lal bahadur shastri jayanti |
2 october को गांधी जी एंव शास्त्री जी ( gandhi and lal bahadur shastri jayanti) दोनों के ही जन्म दिवस मानाया जाता हैं।
- लाल बहादुर शास्त्री का जन्म-2 अक्टूबर 1904 ई को मुगलसराय उत्तर प्रदेश
- लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु-1966 ताशंकद में।
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लाल बहादुर शास्त्री जी का संघर्षपूर्ण जीवन-
लाल बहादुर शास्त्री सचमुच में अपने काटों के बीच ही रास्ता बनाना पड़ था। लाल बहादुर शास्त्री के पास न तो कोई पैतृक पृष्ठभूमि थी और न ही शारिरिक सौष्ठव। दूसरी ओर,उनके सामने बाधाओं के पहाड़ भी आये। आर्थिक विपन्नता ऐसी थी कि नाव से गंगा पार जाने के लिए पैसे नहीं रहते, महीनों तक दोनों दिन भोजन नहीं मिलता एवं पैसे के अभाव में इलाज नहीं होने के कारण एक बेआ से भी हाथ धोना पड़ा। फिर भी ये अपने नाम के अनुरूप बहादूरी के साथ जीवन की बाधओं को पार करते हुए एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बन जाने पर सर्वत्र कहा जाने लगा- लाल बहादुर शास्त्री जी गुदड़ी के लाल निकले।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय! lal bahadur shastri biography
ऐसे कर्मवीर का जन्म 2 अक्टूबर 1904 ई को मुगलसराय उत्तर प्रदेश में एक अति निर्धन परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद तथा माता का नाम श्रीमति रामदुलारी सिन्हा था। बचपन में लाल बहादुर शास्त्री की पिता का देहान्त हो गया । इस कारण घर की आर्थिक विपन्नता और भी बढ़ गयी। बचपन में पढ़ने के लिए लाल बहादुर शास्त्री जी वाराणसी जाया करते थे। खवई क पैसे क अभाव में इन्हें तैरकर गंगा पार जाना पड़ता था। फिर भी बालक लाल बहादुर शास्त्री हिम्मत नहारें और उनकी पढ़ाई चलती रही।
''शास्त्री ''उपाधी-
सन 1911 में गांधी जी वाराणसी आये थे। उस समय महात्मा गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया था। गांधी जी की आवाज पर अनेक छात्र स्कूल कॉलेज छोड़कर इस आंदोलन में कूद पड़े । इन्हीं विद्यार्थी में एक लाल बहादुर शास्त्री जी थे। लाल बहादूर शास्त्री जी ने इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। फलत: इन्हे ढ़ाई वर्षों की सश्रम कारावास की सजा मिली थी। जैल से निकलने के बाद ये काशी विद्यापीठ के छात्र बने और वहां से ये शास्त्री की उपाधि प्राप्त कर लाल बहादूर शास्त्री बनें।
लाल बहादुर शास्त्री का सात्विक जीवन-
आजादी के बाद इन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया । इन्होंने रेल, वाणिज्य एवं गृहमंत्री के दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वाह किया। तीनों विभागों के ये केन्द्रिय मंत्री थे। एक बार हैदराबाद में हुई भीषण रेल दुर्घटना का दायित्व अपने उपर लेकर इन्होंने रेलमंत्री का पद त्यागकर अपनी नैतिकता का परिचय दिया। इनके गृहमंत्रित्व काल की भी अनुकरणीय घटना है। माह के अंतिम दिनों में उनके पुत्र द्वारा स्कूल की फीस एवं किताब कॉपी के लिए रूपयों की मांग की गयी। शास्त्री जी रूपये नहीं दे पाये और कहा- ''वेतन मिलने पर तुम्हें रूपये मिल जायेंगे । अभी रूपये नहीं हैं।''
प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री जी-
पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद 9 जून सन 1964 ई को ये भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री बने। इन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में मात्र 18 महीनों तक देश की सेवा की। इनके प्रधान मंत्रित्व काल में देश का चतुर्दिश विकास हुआ। इनके द्वारा अनेक उत्कृष्ठ कार्य किये गये। भारत नेपाल सम्बन्ध, असम का भाषा विवाद तथा कश्मीर के हजरत बल में पवित्र बाल की चोरी जैसी सम्स्याओं का इन्होंने सूझ बूझ के साथ हल किया । जिससे सर्वत्र इनकी कार्यकुशलता की प्रशंसा होने लगी। 1965 में भारत पाक युद्ध में भारत को विजय दिलाकर इन्होनें विश्व में देश का मस्तक उंचा किया। इन्होंने जय जवान जिय किसान का नारा दिया। इस नारें में शास्त्री जी कहना चाहते थे कि जस प्रकार देश की सुरक्षा के लिए सेना के जवान महत्पवूर्ण हैं उसी प्रकार देश की खुशहाली के लिए किसान महत्पवूर्ण हैं।
लाल बहादुर शास्त्री जी एव ताशकंद-
लाल बहादुर शास्त्री जी सन् 1966 ई में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति कोसिजिन के आग्रह पर पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण रास्ता निकालने के लिए ताशकंद रूस गये। वहां कोसिजिन की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता पत्र तैयार हुआ जिसे ताशकंद समझौता कहा जाता है। ताशकंद समझौता पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटो बाद इनकी ह्दय गति रूक जाने से भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री का निधन हो गया।
लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी एंव कर्मठता हम सबके लिए अनुकरणीय हैं।
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